राज्य

सदी के महानायक, श्री अनिल पालटा

महानायक की कहानी

इस सदी की शुरुआत में जब झारखंड का निर्माण हुआ तो उसपर सबसे बड़ा ग्रहण लगा हुआ था नक्सलवाद का जिससे नवगठित प्रदेश सरकार लाचार थी। ऐसे में अपने टैलेंट, सूझ-बूझ और सख्ती से इसका हल ढूंढा एक युवा पुलिस अधिकारी ने जिसका नाम है अनिल पालटा। पलामू में अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने उग्रवाद प्रभावित इलाकों की जमकर कॉम्बिंग की जिससे नक्सलियों का हौसला पस्त हो गया। उन्होंने स्थानीय लोगों के बीच पुलिस-प्रशासन का ऐसा विश्वास जगाया कि वो इलाका नक्सलवाद से लगभग पूरी तरह मुक्त हो गया। बाद में उनके मॉडल को पूरे प्रदेश में लागू किया गया। फिलहाल उनका प्रयास राज्य की पुलिस के मॉर्डनाइजेशन का है।
अनिल पालटा का जन्म एक सुशिक्षित परिवार में 2 दिसंबर को मुंबई में हुआ था। मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले उनके पिता व्यापारी थे, जो कारोबार के सिलसिले में बोकारो स्टील सिटी आये तो परिवार वहीं शिफ्ट हो गया। उनकी स्कूली शिक्षा बोकारो के प्रतिष्ठित संत जेवियर्स कॉलेज से हुई। बचपन से ही टैलेंटेड रहे अनिल को ग्रैजुएशन के लिये दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफेंस कॉलेज में दाखिला मिल गया जहां से उन्होंने इकोनॉमिक ऑनर्स में डिग्री हासिल की। वर्ष 1990 में उनका चयन आईपीएस सेवा के लिये हुआ और बिहार कैडर मिला। अनिल पालटा की शुरुआती पोस्टिंग बतौर एएसपी मोतिहारी हुई। फिर इसी पद पर दानापुर, बेरमो और मुजफ्फरपुर सिटी में तैनात रहे। बतौर एसपी उन्हें गोपालगंज, औरंगाबाद, जमशेदपुर, गया, और धनबाद आदि जिलों में रहने का अवसर मिला। जब बिहार का विभाजन हुआ तो झारखंड में ही पले-बढ़े अनिल पालटा को झारखंड कैडर सौंपा गया। नये प्रदेश में पलामू व बोकारो में एसपी रहते हुए उनकी सफलता को देखते हुए उनकी गिनती प्रदेश के प्रतिभावान व निडर अधिकारियों में की जाने लगी गयी। उन्हें प्रदेश सरकार ने वर्ष 2001 में वीरता पदक व सराहनीय सेवा पदक से सम्मानित किया। जब वर्ष 2004 में पश्चिमी सिंहभूम में नक्सलियों ने 27 पुलिसवालों की हत्या कर दी तो बिगड़े हालात पर काबू पाने के लिये अनिल पालटा को लगाया गया जहां से उन्होंने नक्सलियों को खदेड़ भगाया। वर्ष 2007 में उन्हें सराहनीय सेवा के लिये भारतीय पुलिस पदक भी सौंपा गया। वर्ष 2007 में जब देश भर में आर्थिक, खासकर बैंकिंग सेक्टर के अपराध बढ़ने लगे तो उन्हें सीबीआई ने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुला लिया। इस दौरान उन्होंने न सिर्फ आर्थिक बल्कि अन्य राज्यों में हुए कई मामलों को हल किया। उन्हें नौ साल से उलझे बहुचर्चित इशरत जहां एनकाउंटर मामले को सुलझाने वाले ऑफिसर के तौर पर भी जाना जाता है। उन्हें कोलकाता में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो का डीआईजी भी बनने का अवसर मिला। वर्ष 2014 में उनके उत्कृष्ट कार्यों लिये उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 2014 में ही उन्होंने राष्ट्रीय डिफेंस कॉलेज में विशेष प्रशिक्षण के लिये दाखिला लिया। वर्ष 2016 की शुरुआत में जब अनिल पालटा वापस झारखंड लौटे तो उनकी दक्षता का सदुपयोग करने के लिये प्रदेश सरकार ने ‘एडीजी ऑपरेशंस’ नामक एक विशेष पद बनाया। उन्हें प्रोन्नति देते हुए एडीजी बनाया गया और नक्सलवाद के खिलाफ अभियानों की जिम्मेदारी सौंपी गयी। पूरे झारखंड से नक्सलियों की रीढ़ तोड़ दी। सरकार ने देखा कि पुलिस को आधुनिक बनाने की सख्त आवश्यकता है तो उन्हें पुलिस के आधुनिकीकरण व प्रशिक्षण की अहम जिम्मेदारी सौंपी। हाल ही में उन्हें बतौर एडीजी सीआईडी का भी कार्यभार सौंपा गया है। किताबें पढ़ने के शौकीन अनिल पालटा को एक्सरसाइज करने और लंबी दूरी तक दौड़ लगाना भी बेहद पसंद है। वे देश के कई प्रमुख हाफ मैराथनों में हिस्सा ले चुके हैं।

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